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Praise the Lord. एक ऐसी रानी जो सच्चे परमेश्वर से नफरत करती है. एक ऐसी रानी जिसने अपने राज्य में बाल पूजा को बढ़ावा दिया. एक ऐसी रानी जिसने अपने पोते पोतीयों को मार डाला, एक ऐसी रानी जिसका एक निर्णय येशू मसीह को दाऊद का संतान कहलाने से रोक सकता था. क्या आप उससे वाकिफ हैं, अगर नहीं.
तो प्रियों आज हम उसी महिला शासक की कहानी लेकर आए है जो सत्ता के लिए अत्याचार, हत्या और अधर्म के रास्ते पर चल पड़ी. उसका जीवन और शासन उसके राज्य के इतिहास का एक काला अध्याय माना जाता है. वह खुद दुष्ट तो थी ही, पर अपने पति और बेटे को भी दुष्टता के मार्ग पर चलने को मजबूर किया और यहाँ तक की उसने अपने ही घराने को नाश करने का आदेश दे दिया. और अंततः अपने कर्म के कारण खुद के विनाश के कारण बनी.
प्रियों आपको बता दे कि, उसके द्वारा पारित किया गया अपने घराने के नाश का आदेश का संबंध येशु मसीह से भी जुड़ा हुआ हैं. क्योंकि वह दाऊद के घराने से जुड़ी हुई है.
प्रियों यह कहानी हैं यहूदा की रानी अतल्याह की, जिसने यहूदा पर छह साल तक शासन किया. अतल्याह की कहानी हमें न केवल उसके क्रूर शासन के बारे में बताती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कैसे धार्मिक और नैतिक पतन का अंत विनाशकारी होता है. रानी अतल्याह के विषय बाइबिल में 2 राजा 8:16–11:16 और 2 इतिहास 22:10–23:15 में उल्लेख मिलता हैं. तो जानते हैं, रानी अतल्याह की कहानी को.
यहूदा की दुष्ट रानी अतल्याह | Athaliah Bible Story in Hindi
राजा अहज्याह की मृत्यु के बाद रानी अतल्याह यहूदा के सातवे सम्राट के रूप में सिंहासन पर विराजमान हुई. उसने 841-835 ईसा पूर्व तक यहूदा पर शासन किया. और बाइबिल के इतिहास में दाऊद के सिंहासन पर बैठने वाली वह एकमात्र महिला सम्राट थी. वह इस्राएल के राजा अहाब और रानी इजबेल की बेटी थी. अहाब और ईज़ेबेल बाइबल के इतिहास में सबसे दुष्ट शासकों में माने जाते हैं, जिन्होंने बाल नामक एक झूठे देवता की पूजा को बढ़ावा दिया. बाल पूजा ने इस्राएल में अधर्म, मूर्तिपूजा और नैतिक पतन को बढ़ावा दिया.
प्रियों आपको बता दे कि, सुलैमान के मृत्यु के बाद और उसके बेटे रहूबियाम के शासनकाल के दौरान यानी लगभग 975 ईसा पूर्व में आपसी मतभेदों के कारण इस्राएल का यहूदा और इस्राएल ऐसे दो भागों में विभाजन हो गया. विभाजन के बाद भी दोनों राज्यों में तनाव जारी रहा. दोनों राज्य एक दुसरे पर हमला करते रहे, इसी तनाव को दूर करने के लिए यहूदा का राजा यहोशापात और इस्राएल के राजा अहाब के बिच एक मजबूत गठबंधन बना. और इसके साथ ही दोनों घरानों के बिच पारिवारिक संबंध भी मजबूत होता गया.
इस्राएल के राजा अहाब और यहूदा के राजा यहोशापात के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों ने अहाब की बेटी अतल्या का विवाह यहोशापात के बेटे योराम से करने का मार्ग प्रशस्त किया. योराम और अतल्याह के शादी के साथ ही इन दोनों घरानों के बिच संबंध इतना मजबूत हुआ कि, दोनों राजाओं की मृत्यु के बाद भी, उनके परिवारों के बीच गठबंधन इस्राएल में येहू के शासनकाल तक जारी रहा.
अतल्याह ने खुद को अपनी माँ इज़ेबेल की तरह ही एक दुष्ट रानी साबित किया. अपने पिता के घर में दुष्टता के साथ परमेश्वर के विरुद्ध जाकर बाल और अन्य देवताओं की उपासना किए जानेवाले वातावरण में पली-बढ़ी होने के कारण, उसने राजा योराम पर बहुत बुरा प्रभाव डाला, जिससे वह इस्राएल के परमेश्वर की सेवा करने से हटकर अन्य देवताओं की सेवा करने लगा. (2 राजा 8:18) योराम इतना दुष्ट बन गया कि, उसने अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिए अपने ही छह भाइयों को भी मार डाला और साथ साथ ही राज्य में परमेश्वर को छोड़ अन्य देवताओं की आराधना करने के लिए मार्ग खुले किए. ( 2 इतिहास 21:11-14 ) और इसके परिणाम के रूप में राजा योराम आंत की बीमारी से मर गया.
जब राजा योराम की मृत्यु हुई, तो उसका बेटा अहज्याह को राजा बनाया गया. और अतल्याह यहूदा की राजमाता बन गई. अतल्याह ने राजा अहज्याह को भी बुरे मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया. और अह्ज्याह भी अपनी मां के दिखाए रास्ते पर चलते हुए अपने पूर्वज दाउद के परमेश्वर को भूल गया और बुरे कामों के साथ अन्य देवताओं की उपासना करने लग गया. और मात्र एक साल के शासनकाल के बिच ही इस्राएल के राजा के सैन्य कमांडर येहू के हाथों उसकी असामयिक मृत्यु हो गई, येहू ने अहाब के पूरे घराने को भी मार डाला था. (2 इतिहास 22:3-4)
अहज्याह की मौत की खबर के साथ साथ अपने पिता के पुरे घराने को येहू द्वारा मार डालने की खबर सुनकर, अतल्याह ने यहूदा के सिंहासन पर कब्ज़ा कर लिया. और राजवंश के सभी लोगों को यानी राजा बनने के लायक सभी संभावित दावेदारों को मार डालने का आदेश दे दिया. ताकि कोई भी उसकी सत्ता को चुनौती न दे सके.
उसने अहज्याह के बच्चों को भी मार डाला, जो उसके अपने पोते थे, ताकि वह निर्विरोध शासक बन सके. और इस तरह उसने यहूदा के सिंहासन पर कब्जा कर लिया और यरूशलेम में यहूदा की रानी के रूप में छह साल तक शासन किया. अतल्याह का यह कदम उसकी सत्ता के प्रति लालसा, क्रूरता और निर्दयता को दर्शाता है.
हालाँकि, अहज्याह की बहन यहोशेबा ने अहज्याह के एक बेटे को इस कत्लेआम से बचा लिया. अतल्याह ने अपने शाही वंश के अधिकांश सदस्यों को मार दिया था लेकिन इस कत्लेआम से यहोशेबा ने अह्ज्याह के एक बेटे को उसकी धाई समेत मंदिर में छुपा दिया. रानी अतल्याह को यहोशेबा ने इस बात की भनक तक नहीं लगने दी. और इस तरह अहज्याह का एक बेटा इस कत्लेआम से बच गया. और अपने शासनकाल के छह साल तक अतल्याह को यह मालूम तक नहीं पड़ा कि उसका एक पोता यहोवा के मंदिर में छिपा हुआ है और जीवित भी है.
प्रियों यहाँ आपको बता दे कि, रानी अतल्याह पुरे राजवंश को यानी राजा दाऊद के वंशजों को मार डालना चाहती थी. क्योंकि उसमें सत्ता की लालसा थी, वह महत्वकांक्षी थी और बाल पूजा को बढ़ावा देना चाहती थी. यही नहीं वह दाऊद के परमेश्वर से नफरत करती थी, जिसने येहू के माध्यम से इस्राएल के दुष्ट राजा अहाब के पुरे घराने को नाश कर दिया था. और यहाँ तक कि, परमेश्वर के विरुद्ध बुरे काम करने वाले यहूदा के राजा अतल्याह के बेटे अहज्याह को भी मार दिया था.
अतल्याह में सत्ता पाने की महत्वाकांक्षा इतनी बढ़ गई थी कि, उसने अपने पोते पोतियों तक को नहीं छोड़ा. अगर अतल्याह राजा दाऊद के पुरे वंश को नाश कर देती तो दाऊद को किया गया परमेश्वर का वादा अधुरा रह जाता. क्योंकि परमेश्वर ने दाऊद से भविष्यवाणी में वादा किया था कि उसका एक बेटा हमेशा के लिए उसके सिंहासन पर बैठेगा. यहाँ परमेश्वर यहोशेबा के माध्यम से अपने वादे को पूरा करने के लिए तत्पर होता है.
आपको बता दे कि, नए नियम में सत्रह आयतें यीशु को “दाऊद की संतान” के रूप में वर्णित करती हैं. यानी यीशु वादा किया गया मसीहा है, जिसका अर्थ है कि उसे दाऊद के वंश से होना चाहिए था. मत्ती अध्याय 1 में दर्ज वंशावली भी यही प्रमाण देती है और लूका 1:32 में भी इसका उल्लेख किया गया हैं.
इब्राहीम की सन्तान, दाऊद की सन्तान, यीशु मसीह की वंशावली (मत्ती 1:1)
वह महान होगा और परमप्रधान का पुत्र कहलाएगा, और यहोवा परमेश्वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उसे देगा. 33 और वह याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा, और उसके राज्य का अन्त न होगा. (लूका 1:32–33 )
तो प्रियों अगर अतल्याह पुरे दाऊद वंश को नाश कर देती तो, जग के उद्धारक येशु मसीह दाऊद के संतान न कहलाते.
रानी अथालिया की मृत्यु
कहानी में आगे देखते हैं कि, यहोशेबा अहज्याह के बेटे को मंदिर में छह साल तक छिपाए रखती हैं, जहाँ वह महायाजक यहोयादा के मार्गदर्शन में बढ़ा होता जाता हैं. जब वह सात साल का गया, तब महायाजक यहोयादा ने राज्य के अंगरक्षकों, पहरुओं के शतपतियों और मंदिर के पहरेदारों को इक्कठा किया और अहज्याह के बेटे के प्रति वफादार रहने की शपथ दिलाई. और उन्हें दाऊद के घराने के असली वारिस के बारे में बताया. और ये भी कहा की, अतल्याह के अधर्मी शासन को समाप्त किया जाए.
सभी सुरक्षा उपाय किए जाने के बाद, यहोयादा महायाजक और उसके सहयोगी सुलैमान के मंदिर में एकत्र हुए और उन्होंने अह्ज्याह के बेटे योआश को बाहर निकाला और उसे ताज पहनाया, तब लोगों ने उसका अभिषेक कर के उसको राजा घोषित किया; मंदिर में लोगों ने खुशी से जयकारे लगाए और अहज्याह के बेटे को राजा के रूप में स्वीकार कर के बोल उठे, राजा जीवित रहे.
जब रानी अतल्याह ने जश्न और तुरहियों की आवाज़ सुनी, तो वह मंदिर में आई. और जब उसने देखा कि एक नए राजा का राज्याभिषेक हुआ है, तो उसने अपने कपड़े फाड़े और “राजद्रोह, राजद्रोह” कह कर चिल्लाने लगी, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. लोगों ने अपना राजा चुन लिया था. यहोयादा के आदेश के अनुसार, उसे और उसका साथ देनेवालों को गिरफ्तार कर लिया गया, और मंदिर के बाहर ले जाकर मृत्युदंड की शिक्षा दी गई. और लोग अतल्याह के नेतृत्व से मुक्त होने से राहत महसूस कर करने लगे. उसके आतंक के शासन के अंत के साथ, “देश के सभी लोग आनन्दित हुए, और शहर में शांति रही”. क्योंकि यहूदा की रानी के रूप में अथलिया का शासनकाल अत्याचार और उत्पीड़न से भरा था.
प्रियों रानी अतल्याह की अंततः मृत्यु हो गई, लेकिन अपनी मृत्यु से पहले, उसने कई लोगों को परमेश्वर को छोड़, दुष्टता के साथ जीवन जीने को मजबूर किया और उनकी मृत्यु का कारण बनी; उनमें से एक उसका पति योराम था, एक उसका बेटा अहज्याह था, और बाकी अन्य लोग भी शामिल थे.
प्रियों अतल्याह का शासनकाल यहूदा के इतिहास में सबसे अराजक और दुखद समयों में से एक था. उसने बाल की पूजा को बढ़ावा दिया, ईश्वर की उपासना को नष्ट करने की कोशिश की और निर्दोष लोगों की हत्याएं कीं. उसके अधर्म ने यहूदा को नैतिक और धार्मिक रूप से पतित कर दिया. यहूदा, जो कभी यहोवा (ईश्वर) की आराधना के लिए जाना जाता था, अधर्म और मूर्तिपूजा का केंद्र बन गया था.
सिख
तो प्रियों रानी अतल्याह की कहानी से हम क्या सिख सकते हैं, यही की जो कोई बुराई के साथ जीवन जीता हैं, परमेश्वर के अधिकार को अस्वीकार करता हैं, अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए जीता हैं, उसका अंत निश्चित हैं. रानी अतल्याह दुष्ट तो थी ही पर उसने अपने परिवार के लोगों के साथ साथ अपने शासनकाल के दौरान राज्य के लोगों को भी दुष्टता के मार्ग पर चलने के लिए मजबूर किया. यहाँ तक कि, सत्ता के लालच में अपने पोते-पोतियों का भी नाश करवा दिया.
उसने धार्मिकता से ज़्यादा व्यक्तिगत सत्ता, राजाओं के राजा के अधीनता से ज़्यादा स्वतंत्रता की लालसा की. उसने हिंसा, रक्तपात और राजनीतिक चालबाज़ी से सबकुछ हासिल किया. फिर भी वह सेनाओं के यहोवा के सामने टिक नहीं पाई. और उसे आज दुष्ट रानी के रूप में देखा जाता हैं.
प्रियों यह कहानी हमें बताती है कि अधर्म, अहंकार और अत्याचार के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति अंततः हार जाता है. यह कहानी यह भी दर्शाती है कि ईश्वर की योजना हमेशा न्याय और सत्य को पुनः स्थापित करती है, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों. यह हमें विश्वास, धैर्य और सच्चाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है.
प्रियों भजन संहिता 9:17 में लिखा हैं, दुष्ट अधोलोक में लौट जाएंगे, तथा वे सब जातियां भी जो परमेश्वर को भूल जाती है.
तो प्रियों हमें यहोवा परमेश्वर पर भरोसा कर के उसके अधिकार के तहत जीना हैं, हिंसा से, दुष्टता से, अपनी महत्वाकांक्षाओं से दूर रहकर परमेश्वर की आज्ञाओं के अनुसार जीवन जीना है तब वह हमें उसके वादे के मुताबिक हर संकट से बचाए रखेगा और उसका वारिस बनाएगा.
तो हम आशा करते हैं, की आपको रानी अतल्याह के जीवन से जरुर सिखने को मिला होगा. जो आपको परमेश्वर के साथ अपने संबंध को मजबूत करने में साहयता करेगा. आपको यह लेख कैसा लगा हमें कमेंट सेक्शन में जरुर बताए. धन्यवाद आमेन
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