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क्या सच्च में प्रार्थना का उत्तर मिलता हैं | ये 5 प्रार्थना साबित करती हैं उत्तर मिलता हैं | Does God Answer Prayers in hindi

Does God Answer Prayers : Praise the Lord. जब कोई किसी गंबीर बीमारी से गुजरता है, या किसी संकट का सामना करता है, या जब दुनिया में से सहारा मिलना ही बंद हो जाता हैं, तब वह परमेश्वर को जरुर पुकारता हैं. वह परमेश्वर के सामने अपने आंसू बहाकर गिडगिडाकर प्रार्थना करता हैं, ताकि वह सुने और उसकी प्रार्थना का उत्तर दे.

पर क्या सच्च में प्रार्थना का उत्तर मिलता हैं? तो हाँ, प्रार्थना का जरुर उत्तर मिलता है, क्योंकि उसे सुनने वाला सर्वशक्तिमान है, जो हर धर्मी की प्रार्थनाएँ सुनता हैं. और वह हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर उस तरह से नहीं देता जैसा हम चाहते हैं, लेकिन वह हमेशा उत्तर देता है. यिर्मियाह 29 : 12 में लिखा हैं,

“तब उस समय तुम मुझ को पुकारोगे और आकर मुझ से प्रार्थना करोगे और मैं तुम्हारी सुनूंगा.”

प्रियों यहाँ परमेश्वर खुद कहता है कि मैं तुम्हारी सुनूंगा. यानी वह हमारी प्रार्थनाओं को सुनता है और उसका उत्तर भी देता हैं. यशायाह 65:24 में लिखा है,

उनके पुकारने से पहिले ही मैं उन को उत्तर दूंगा, और उनके मांगते ही मैं उनकी सुन लूंगा।

तो प्रियों बाइबिल में हमें परमेश्वर की ओर से प्रार्थना के उत्तर दिए जाने के कई प्रमाण मिलते है, जो एक मसीही को प्रार्थना में मजबूत बनाने में कारगर साबित होते हैं. लेकिन उन प्रार्थनाओं पर हम अपना मन केंद्रित ही नहीं करते. हम उन प्रार्थनाओं के बारे में जरुर जानते हैं. पर उनकी तरह प्रार्थना में जीवन बिताते ही नहीं. तो आज के इस लेख के माध्यम से हम उन प्रार्थनाओं पर अपना मन लगाएँगे, जो प्रार्थनाओं का उत्तर सच्च में मिलता है ये साबित करते हैं. और ये भी जानेंगे की प्रार्थना कैसे करना है ताकि परमेश्वर की ओर से हमारी प्रार्थना का उत्तर मिल सके. आइए पहले जानते हैं प्रार्थना क्या है और कैसे करे.

प्रार्थना कैसे करे ताकि उत्तर मिले

प्रियों प्रार्थना का मतलब परमेश्वर से संवाद करना, अपनी मन की बातों को उसके सामने रखना है. और उसकी बातों को भी सुनना हैं. यानी हमारे मन में उसकी उपस्थिति को महसूस करते हुए उसके प्रति सचेत होना हैं. लेकिन कई बार हमारी प्रार्थना कुछ शब्दों को बडबडाने तक सिमित हो जाती हैं. और बडबडाने वाली प्रार्थना का कोई अर्थ ही नहीं होता. यही नहीं कभी कभी हम बस अपनी समस्याओं के समाधान मांगने या जो कुछ हमने हासिल किया है उसी को दर्शाने के उद्देश्य से प्रार्थना करते है ऐसी प्रार्थनाओं का भी कोई मोल नहीं. जैसे फरीसी और चुंगी लेनेवाले के दृष्‍टान्त से हमें पता चलता हैं. इसे आप लुक 18;9 से 14 तक पढ़ सकते हैं.

तो प्रियों प्रार्थना केवल अपनी समस्याओं का समाधान मांगना या आशीष मांगना तक ही सिमित नहीं होता. प्रार्थना मतलब परमेश्वर से सवांद करना, परमेश्वर को सुनना और परमेश्वर की उपस्थिति को मह्सूस करना होता हैं. अगर हम अपनी ह्रदय की गहराई से परमेश्वर से संवाद नहीं कर सकते तब यह एक मृत होने के समान हैं. इसलिए प्रार्थना में वो सामर्थ्य होना चाहिए जो हमारी प्रार्थना को परमेश्वर तक पहुंचा सके. और प्रार्थना तब शक्तिशाली हो सकती है जब हम परमेश्वर को सच्चे मन से पुकारते है. प्रार्थना तब शक्तिशाली हो सकती है जब हम उस पर सच्चे मन से भरोसा करते हैं.

प्रियों में यहाँ आपके सामने मत्ती अध्याय 6, वचन 5 से 8 तक पढ़ना चाहूँगा, जहाँ येशु मसीह ने प्रार्थना कैसे करना है ये सिखाया है,

“जब तू प्रार्थना करे, तो कपटियों के समान न हो, क्योंकि लोगों को दिखाने के लिये आराधनालयों में और सड़कों के मोड़ों पर खड़े होकर प्रार्थना करना उनको अच्छा लगता है. मैं तुम से सच कहता हूँ कि वे अपना प्रतिफल पा चुके. परन्तु जब तू प्रार्थना करे, तो अपनी कोठरी में जा; और द्वार बन्द कर के अपने पिता से जो गुप्‍त में है प्रार्थना कर. तब तेरा पिता जो गुप्‍त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा. प्रार्थना करते समय अन्यजातियों के समान बक–बक न करो, क्योंकि वे समझते हैं कि उनके बहुत बोलने से उनकी सुनी जाएगी. इसलिये तुम उन के समान न बनो, क्योंकि तुम्हारा पिता तुम्हारे माँगने से पहले ही जानता है कि तुम्हारी क्या–क्या आवश्यकताएँ हैं.

तो प्रियों आप जान गए है की प्रार्थना क्या है और कैसे करना हैं. अब जानते हैं बाइबिल में दर्ज उन प्रार्थनाओं के बारे में जो साबित करते है कि परमेश्वर प्रार्थनाओं को सुनता भी है और उसका जवाब भी देता हैं. यहाँ आपको बता दें कि, बाइबल में से हम सैकड़ों प्रार्थनाओं की सूची बना सकते हैं, लेकिन यहाँ हमने सिर्फ 5 प्रार्थनाओं को लिया है, तो आइए जानते है.

क्या सच्च में प्रार्थना का उत्तर मिलता हैं | Does God Answer Prayers in hindi

1). एलिया की प्रार्थना

जब अहाब राजा बना, तब उसने वह कर्म किए जो परमेश्वर के दृष्टी में बुरे थे. उसी कारण देश में 3 साल से भी अधिक समय तक अकाल पड़ा. तिन साल के बाद एलियाह ने खुद को प्राप्त हुए वचन के मुताबिक, परमेश्वर से बारिश के लिए प्रार्थना की. उसने एक दो बार नहीं सात बार प्रार्थना की और उसे उसकी प्रार्थना का जवाब मिला. एलियाह के प्रार्थना के बौदलत परमेश्वर ने उस देश में बारिश की और भूमि फलवंत हुई. इसका विवरण हम पहले राजा अध्याय 18 में पा सकते है. इसको लेकर

याकूब 5; 17, 18 में लिखा हैं,

एलिय्याह भी तो हमारे समान दु:ख–सुख भोगी मनुष्य था; और उसने गिड़गिड़ाकर प्रार्थना की कि मेंह न बरसे; और साढ़े तीन वर्ष तक भूमि पर मेंह नहीं बरसा. फिर उसने प्रार्थना की, तो आकाश से वर्षा हुई, और भूमि फलवन्त हुई.

तो प्रियों एलियाह ने एक-दो बार प्रार्थना कर के छोड़ नहीं दिया. लेकिन उसने जब तक प्रार्थना का जवाब नहीं मिला तब तक गिड़गिड़ाकर प्रार्थना की. और सातवीं बार उसे उसकी प्रार्थना का परिणाम मिला. तो हमें भी प्रार्थना में निरंतरता रखनी चाहिए, ना की एक बार प्रार्थना कर के उसके परिणाम की राह देखनी चाहिए.

2) हन्ना की प्रार्थना

बाइबिल बताती है कि,

हन्ना बांझ थी और शादी के बाद लंबे समय तक गर्भ धारण करने में असमर्थ थी. प्राचीन इस्राएल में, बच्चों को परमेश्वर के आशीर्वाद का एक स्पष्ट संकेत माना जाता था. लेकिन हन्ना को कोई बच्चा नहीं था, इसलिए उसकी सौतन (एलकाना की दूसरी पत्नी पन्निना), हन्ना का मज़ाक उड़ाया करती थी. और हन्ना का दुःख और बड़ा देती थी. क्योंकि उसे संतान प्राप्ति हुई थी.

तब हन्ना ने प्रार्थना में परमेश्वर के सामने अपनी आत्मा की इच्छा बताई, हन्ना ने इतनी लीन होकर प्रार्थना की कि, उसके ओठ काँप रहे थे. उस वक्त हन्ना पर गलत इल्जाम भी लगाया गया. पर भी उसने विश्वास के साथ उसका सामना किया. और उसने परमेश्वर से वादा किया कि, अगर उसका एक बेटा हुआ, तो वह अपने बेटे को वापस परमेश्वर की सेवा में दे देगी. इस विषय में हम पहले शहमुएल अध्याय 1 में पढ़ सकते हैं.

1 शमुएल 1: 10 में लिखा है, “और यह मन में व्याकुल हो कर यहोवा से प्रार्थना करने और बिलख बिलखकर रोने लगी.”

प्रियों हन्ना ने व्याकुल होकर अपने आंसू बहाकर और आत्मा में लीन होकर परमेश्वर से प्रार्थना की. और सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने उसकी सुनी. परमेश्वर ने हन्ना को शमुएल के साथ छह बच्चे दिए. प्रियों प्रार्थना के मामले में हन्‍ना, परमेश्वर के सभी लोगों के लिए एक बेहतरीन मिसाल है.

3). याबेज की प्रार्थना

याबेस के बारे में हम पहले इतिहास अध्याय 4 वचन 9-10 में पढ़ सकते हैं. इन 2 वचनों के जरिए ही हम ये जान सकते हैं कि, याबेस की प्रार्थना का उत्तर उसे मिला. बाइबिल में उसके बारे ज्यादा उल्लेख नहीं किया गया, लेकिन जितना उल्लेख है उसमें उसकी प्रार्थना को जरुर दर्ज किया गया है.

पहले इतिहास अध्याय 4 वचन 10 में लिखा है कि,

और याबेस ने इस्राएल के परमेश्वर को यह कह कर पुकारा, कि भला होता, कि तू मुझे सचमुच आशीष देता, और मेरा देश बढाता, और तेरा हाथ मेरे साथ रहता, और तू मुझे बुराई से ऐसा बचा रखता कि मैं उस से पीड़ित न होता! और जो कुछ उसने मांगा, वह परमेश्वर ने उसे दिया।

प्रियों याबेस ने गंभीरता से और पुरे जोश के साथ प्रार्थना की. उसने परमेश्वर को अपने स्रोत के रूप में पहचाना और उसकी उपस्थिति के लिए प्रार्थना की. वह परमेश्वर की उपस्थिति के बिना परमेश्वर का आशीर्वाद नहीं चाहता था. इसलिए परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना सुन ली और उसने जो कुछ माँगा उसे परमेश्वर ने दे दिया.

4) यहोशापात की प्रार्थना

जब यहूदा पर बड़े संकट का खतरा मंडरा रहा था. यानी तीन देशों की सेना एक साथ मिलकर यहोशापात पर चढाई कर के आ रही थी. तब राजा यहोशापात समेत लोग भी बहुत डर गए थे. उस समय यहोशापात पुरे देश में उपवास के साथ परमेश्वर को शरण जाने की घोषणा की. तब वह परमेश्वर से अपने देश की सुरक्षा के लिए प्रार्थना करता हैं. हम इसका विवरण 2 इतिहास अध्याय 20 में पाते हैं.

तब परमेश्वर उन्हें ना डरते हुए मैदान में जाने को कहता है क्योंकि परमेश्वर उनकी रक्षा करने का आश्वासन देता हैं. और मैदान में परमेश्वर उनकी और से उतरता हैं. और उस बड़ी सेना से उन्हें बचाता हैं.

प्रियों यहाँ यहोशापात का प्रार्थना के साथ साथ परमेश्वर पर भरोसा भी था की यहोवा हमारी प्रार्थना सुनेगा और रक्षा भी करेगा. इसलिए वह जंग के मैदान में जाने से पीछे नहीं हटा. यानी जब हमारे सामने बड़ा संकट आ कर खड़ा हो जाता है तब हमें ना डरते हुए परमेश्वर पर भरोसा कर के उसको पुकारना हैं. क्योंकि वह हमारी रक्षा करने के लिए सदा तत्पर रहता हैं.

5) योना की प्रार्थना

योना जब परमेश्वर की आज्ञा के विरुद्ध उसके सामने से भाग रहा था. तब उसके जीवन में बड़ा संकट आया. वह जिस जहाज में होकर भाग रहा था. उसी ओर समुंद्र में तूफान उठा. और योना के साथ साथ जहाज में सवार यात्रियों का जीवन खतरे में आ गया. जब योना को समुंद्र में फेका गया, तब परमेश्वर ने उस पर दया करते हुए उसे बचाने के लिए एक बड़ी मछली को आज्ञा दी की वह उसे निगल ले. तब योना अपनी गलती का एहसास करते हुए परमेश्वर के सामने पश्चाताप करते हुए प्रार्थना करता हैं. और परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना को सुनते हुए उस संकट से बचा लिया.

यानी योना की तरह हमें भी अपनी गलती को उसके सामने कबूल कर के पश्चाताप के साथ प्रार्थना करना हैं. तब परमेश्वर हमारी जरुर सुनेगा.

प्रियों ये पांच उदाहरण हमने आपके सामने रखे, जो साबित करते हैं प्रार्थना का उत्तर जरुर मिलता है. और भी बहुत सारी प्रार्थनाओं के बारे में हम बात कर सकते है, जिन प्रार्थनाओं का उत्तर परमेश्वर की ओर से मिला है.

बस हम जब भी प्रार्थना करे तब नम्रता के साथ, व्याकुल होकर, अपने आंसूओं को बहाकर, आत्मा में लीन होकर प्रार्थना करना हैं. फिर इसका अनुभव करना की हमारी प्रार्थना का उत्तर सर्वशक्तिमान परमेश्वर कैसे देता हैं. वह हमारे सामने खड़े हुए बड़े से बड़े संकट से भी हमारी रक्षा करेगा. हमें उस हालातों में से बहार निकलेगा, जो हमें कमजोर करते हैं. जब हम पुरे विश्वास के साथ उससे पुकारेंगे, तब वह हमारी सुनेगा, और उतर भी देगा. हमें वह कभी भी लजित नहीं होने देगा. और सदा हमारा सर ऊँचा रखेगा.


प्रियों हम एक महान, सर्वशक्तिमान, आश्चर्यकर्म करने वाले अद्भुत परमेश्वर की सेवा करते हैं, जो इतना शक्तिशाली है कि उसने ब्रह्मांड में हर आकाशगंगा का निर्माण किया है, और इतना शक्तिशाली भी है कि वह हमारी हर प्रार्थना को सुनता है.

तो प्रियों प्रार्थना का मतलब सिर्फ़ ईश्वर से अपनी ज़रूरतों के लिए पूछना नहीं है, और न ही सिर्फ़ हमें जो चाहिए उसे देने के लिए उसका शुक्रिया अदा करना है. यह उससे कहीं ज़्यादा गहरा है. यह उसके साथ जुड़ने, उसके साथ अपने दिल की बात साझा करने, उस पर ध्यान केंद्रित करने और इससे भी महत्वपूर्ण, उसकी बात सुनने के बारे में है. और जब हम इस प्रकार प्रार्थना करते है तब वह जरुर सुनता हैं. और उसी तरह उत्तर देगा जैसे एल्लियाह, हन्ना, याबेस, यहोशापत और योना को दिया.

तो प्रियों हम आशा करते आपको इस लेख के माध्यम से प्रार्थना के बारे में जरुर सिखने को मिला होगा. जिसे आप अपने जीवन में लागु करेंगे. और परमेश्वर आपकी प्रार्थना का उत्तर जरुर देगा. तो मिलते है अगले विडियो में तब तक प्रभु आपके साथ रहे. आमेन.

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