Lessons From Story Of Janah in Hindi, Moral Story Of Janah in Hindi : essential lessons from the life of jonah, life lessons from the book of jonah
Praise the Lord. जब कोई हमेशा बुराई के साथ जीवन व्यतीत करता हैं. ना किसी के साथ प्रेम से रहता है, ना किसी का आदर करता हैं, ना बोली में मधुरता रखता हैं. ना ही परमेश्वर के प्रति उसके मन में आज्ञाकारिता हैं. ऐसे व्यक्ति के विषय में हमारा विचार यही रहेगा की परमेश्वर उसका जल्द से जल्द न्याय करे. और उसको ऐसा दंड दे कि, वह बच ना पाए. लेकिन क्या परमेश्वर भी उसके प्रति यही सोच रखेगा. नहीं !
प्रियों परमेश्वर हर एक इंसान की भलाई चाहता हैं, चाहे वह उसके मार्ग पर चलने वाला हो या बुराई के साथ जीवन जीने वाला हो. परमेश्वर उसके मार्ग पर चलने वालों को और मजबूत बनता है ताकि, वह सच्चाई के साथ दृड़ता से खड़ा रहे और सुख में अपना जीवन बिताये. और जो बुराई के साथ जीवन जीता है उसको एक मौका और देता है ताकि वह अपना मन फिरा सके. और उद्धार पा सके. परमेश्वर ने मनुष्य को अपने प्रतिरूप में बनाया है इसलिए वह हर एक का भलाई चाहता है.
तो प्रियों आज के इस लेख के माध्यम से हम यह जानने की कोशिस करेंगे कि, परमेश्वर हमसे क्या चाहता है? परमेश्वर की इच्छा क्या हैं? हमें दूसरों के प्रति कैसा नजरिया रखना हैं? प्रियों आज हम योना नबी की कहानी को जानेंगे और उसके जीवन के माध्यम से हम इन सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिस करेंगे. आइए जानते है योना की कहानी
योना की कहानी | Lessons From Story Of Janah in Hindi
योना एक भविष्यवक्ता था, वह एक ऐसा व्यक्ति था, जो परमेश्वर की ओर से दूसरों से बात करता था. योना इस्राएल के राजा यारोबाम द्वितीय (793-753 ई.पू.) के शासनकाल के दौरान गैलीलियन शहर गथ-हेफर (नासरत से लगभग चार मील उत्तर में) में रहता था. एक दिन योना को परमेश्वर का वचन प्राप्त हुआ कि वह नीनवे को जाए और वहां के लोगों के विरुद्ध बोले यानी कि नीनवे के लोगों को उनकी दुष्टता से मन फिराने को कहें. लेकिन योना परमेश्वर की आज्ञा को ना मानते हुए वह उसके सम्मुख से भाग जाने के लिये उठ खड़ा हुआ. और यापो नगर को जा कर तर्शीश जाने वाले एक जहाज पर भाड़ा देकर चढ़ गया कि उन प्रवासियों के साथ हो कर यहोवा के सम्मुख से तर्शीश को चला जाए.
प्रियों यहाँ एक बात पर गौर करने जैसा हैं कि, योना एक भविष्यद्वक्ता है, वह परमेश्वर की वाणी को दूसरों तक पहुंचाता है, परमेश्वर की भय मानने वाला है. लेकिन फिर भी उसने परमेश्वर की आज्ञा का पालन नहीं किया. और वह परमेश्वर के सामने से भागता है. पर क्यों? प्रियों, नीनवे असीरियन साम्राज्य की राजधानी थी. और कहा जाता है कि, वहां के लोग बहुत ही दुष्ट थे. बुराई के साथ जीते थे. वे इतने क्रूर थे कि, किसी विरोधी को पकड़ लिया तो उनकी जीभ निकाल लेते थे, जीवित लोगों की खाल उतार देते थे, लड़के-लड़कियों को जिंदा जला देते थे और हाथपैर काट लेते थे. इतने बुरे लोग थे. साथ ही असीरियन साम्राज्य इजराइल का घोर विरोधी था. और एक इजराइली का वहां जाना मौत के मुहं में हात डालना जैसा था. अब ये बाते जानकर हमारे मन में जो विचार आ रहे है सायद नीनवे जाने को लेकर योना के मन में भी यही विचार आते होंगे. है ना? लेकिन योना सच्च में क्यों भागा इस पर हम अंत में बात करेंगे. अपनी कहानी पर लौटते है.
समुद्र में तूफान का आना
योना जिस जहाज में बैठकर तर्शीश को जा रहा था. उसी ओर परमेश्वर प्रचंड तूफान लेकर आया. समुद्र में बड़ी आंधी उठी, यहां तक कि जहाज टूटने पर था. और इस तूफान को देखकर जहाज के कप्तान समेत सभी यात्री डर गए. और वे अपने अपने देवताओं को दोहाई देने लगे. यही नहीं जहाज में जो व्यापार की सामग्री थी उसे समुद्र में फेंकने लगे ताकि कि जहाज हल्का हो जाए. समुद्र में उठे इतने बढ़े तूफान के बावजूद योना जहाज के निचले भाग में सोया हुआ था, और गहरी नींद में पड़ा हुआ था.
तब मांझी उसके निकट आकर कहता है, तू भारी नींद में पड़ा हुआ क्या करता है? उठ, अपने देवता की दोहाई दे! हो सकता है कि तेरा परमेश्वर हमारी चिन्ता करे, और हमारा नाश न हो. उसी दौरान वे, इतना बढ़ा संकट किस के कारण आया है यह जानने के लिए चिठियाँ डालते है, और उसमें योना की चिठ्ठी निकलती हैं.
तब वे योना से पूछते है कि, “तू कहाँ से आया है? तू किस जाती और किस देश का है? और तेरा उद्यम क्या है?” तब योना उनसे कहता है, “मैं इब्री हूं; और स्वर्ग का परमेश्वर यहोवा, जिसने जल स्थल दोनों को बनाया है, उसी का भय मानता हूं.”
योना की ये बाते सुनकर वे और डर जाते है. और योना से कहते है कि, “तू ने यह क्या किया है?” आगे उन्होंने उस से पूछा, “हम तेरे साथ क्या करें जिस से समुद्र शान्त हो जाए?” बता दे कि, उस समय समुद्र की लहरें बढ़ती ही जाती थीं.
तब योना ने उन से कहा, “मुझे उठा कर समुद्र में फेंक दो; तब समुद्र शान्त पड़ जाएगा; क्योंकि मैं जानता हूं, कि यह भारी आंधी तुम्हारे ऊपर मेरे ही कारण आई है.”
प्रियों यहाँ योना खुद कबूल करता है कि, समुद्र में जो तूफान उठा था, जो आंधी आई थी और जहाज में सवार लोगों पर जो मुसीबत खड़ी हुई थी उसकी वजह खुद योना था. यानी जब हम परमेश्वर की आज्ञा का पालन नहीं करते तब जो संकट हमारे उपर आता है उसके चपेट में हमारे साथ रहने वाले लोग भी आ सकते हैं. उसमें परिवार के लोग भी हो सकते है, मित्रगन और अन्य लोग भी शामिल हो सकते. तो प्रियों हमें नित्य परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना बहुत जरुरी है.
मछली के पेट में योना
जैसे ही योना ने समुद्र में फेकने की बात लेकिन वे उसे समुद्र में नहीं फेंकना चाहते थे, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि उसका परमेश्वर वास्तव में मौजूद था और उन्हें एक भविष्यवक्ता को समुद्र में फेंकने के परिणामों का भी डर था. इसलिए उन्होंने वापस तट की और जाने के लिए कड़ी मेहनत की. फिर भी, जब सारी उम्मीदें खत्म होती दिखीं तो उन्होंने सावधानी बरती और योना को समुद्र में फेकने से पहले परमेश्वर को पुकार कर कहा, ” हे प्रभु, हम प्रार्थना करते हैं कि कृपया इस आदमी के जीवन के लिए हमें नाश न होने दें, और हम पर निर्दोष खून का आरोप न लगाएं. क्योंकि हे यहोवा, जो कुछ तेरी इच्छा थी वही तू ने किया है.”
तब उन्होंने योना को उठा कर समुद्र में फेंक दिया; और समुद्र की भयानक लहरें थम गईं. आगे उन मनुष्यों ने परमेश्वर का बहुत ही भय माना, और उसको भेंट चढ़ाई और मन्नतें मानी ताकि योना को फेकने का दोष अपने उपर ना आए. जैसे ही योना को समुद्र में फेका गया परमेश्वर ने एक बड़ा सा मच्छ को उसे निगलने के लिए तैयार रखा था; और इस तरह योना उस बड़े से मच्छ के पेट में तीन दिन और तीन रात पड़ा रहा. और मछली के पेट से वह पश्चातापी ह्रदय के साथ परमेश्वर को प्रार्थना करता है. बाद में परमेश्वर उस बड़ी मछली को आज्ञा देता है कि, योना को सुखी भूमि पर उगल दे. मछली ने ऐसा ही किया.
योना को नीनवे जाने को दूसरी बार आज्ञा
फिर एक बार योना को नीनवे को जाने को लेकर परमेश्वर का वचन प्राप्त हुआ. और इसबार वह परमेश्वर की आज्ञा को मानते हुए नीनवे शहर में गया. नीनवे एक बहुत बड़ा शहर था. और पुरे नीनवे शहर में फिरने के लिए तीन दिन लगते थे. योना शहर में प्रवेश करके एक दिन की यात्रा पूरी करने के साथ ही यह प्रचार करता गया कि, “अब से चालीस दिन के बीतने पर नीनवे उलट दिया जाएगा.” इस प्रकार वह पुरे नीनवे में परमेश्वर का वचन लोगों को सुनाता गया.
योना का प्रचार सुनकर नीनवे के लोग ने परमेश्वर के वचन पर विश्वास किया. और उन्होंने पुरे नीनवे शहर में उपवास की घोषणा की. और बड़े से लेकर छोटे तक सभों ने टाट ओढ़ा. जब यह समाचार नीनवे के राजा के कान में पहुँचा; और उसने सिंहासन पर से उठ कर, अपने राजकीय वस्त्र उतारकर टाट ओढ़ लिया, और राख पर बैठ गया. राजा ने प्रधानों से सम्मति लेकर नीनवे में इस आज्ञा का ढिंढोरा पिटवाया कि: “क्या मनुष्य, क्या गाय–बैल, क्या भेड़–बकरी, या अन्य पशु, कोई कुछ भी न खाए; वे न खाएँ और न पानी पीएँ. मनुष्य और पशु दोनों टाट ओढ़ें, और वे परमेश्वर की दोहाई चिल्ला–चिल्ला कर दें; और अपने कुमार्ग से फिरें; और उस उपद्रव से, जो वे करते हैं, पश्चाताप करें. सम्भव है, परमेश्वर दया करे और अपनी इच्छा बदल दे, और उसका भड़का हुआ कोप शान्त हो जाए और हम नष्ट होने से बच जाएँ.” इस तरह नीनवे के लोगों ने परमेश्वर के सामने पश्चाताप के साथ बचाने के लिए अपनी दोहाई दी.
प्रियों जो लोग इतने क्रूर थे, बुराई के साथ जीवन जीते थे, और परमेश्वर को जानते तक नहीं थे. वे लोग अपने विरोधी देश के भविष्यवक्ता का प्रचार सुनकर इतने जल्दी मन फिरा लेते हैं. है ना आश्चर्य कि बात, लेकिन हम परमेश्वर की योजना को पहचान नहीं पाते है. उसके विचार हमारे विचारों से कई गुना ऊँचे है. नीनवे के लोगों को एक मार्गदर्शक की आवश्यकता थी. जो उन्हें परमेश्वर का वचन सुना सके. और वह काम परमेश्वर योना के माध्यम से करता है.
जब परमेश्वर ने नीनवे के लोगों के कामों को देखा, कि वे कुमार्ग से फिर रहे हैं, तब परमेश्वर ने अपनी इच्छा बदल दी, और उनकी जो हानि करने की ठानी थी, उसको न किया. यह बात योना को बहुत ही बुरी लगी, और वह क्रोधित हो गया. उसने यहोवा से यह कहकर प्रार्थना की, “हे यहोवा, जब मैं अपने देश में था, तब क्या मैं यही बात न कहता था? इसी कारण मैं ने तेरी आज्ञा सुनते ही तर्शीश को भाग जाने के लिये फुर्ती की; क्योंकि मैं जानता था कि तू अनुग्रहकारी और दयालु परमेश्वर है, और विलम्ब से कोप करनेवाला करुणानिधान है, और दु:ख देने से प्रसन्न नहीं होता. इसलिये अब हे यहोवा, मेरा प्राण ले ले; क्योंकि मेरे लिये जीवित रहने से मरना ही भला है.” यहोवा ने कहा, “तेरा जो क्रोध भड़का है, क्या वह उचित है?” इस पर योना उस नगर से निकलकर, उसकी पूरब ओर बैठ गया; और वहाँ एक छप्पर बनाकर उसकी छाया में बैठा हुआ यह देखने लगा कि नगर का क्या होगा?
तब यहोवा परमेश्वर ने एक रेंड़ का पेड़ उगाकर ऐसा बढ़ाया कि योना के सिर पर छाया हो, जिससे उसका दु:ख दूर हो. योना उस रेंड़ के पेड़ के कारण बहुत ही आनन्दित हुआ. सबेरे जब पौ फटने लगी, तब परमेश्वर ने एक कीड़े को भेजा, जिस ने रेंड़ का पेड़ ऐसा काटा कि वह सूख गया. जब सूर्य उगा, तब परमेश्वर ने पुरवाई बहाकर लू चलाई, और धूप योना के सिर पर ऐसी लगी कि वह मूर्च्छित होने लगा; और उसने यह कहकर मृत्यु माँगी, “मेरे लिये जीवित रहने से मरना ही अच्छा है.” परमेश्वर ने योना से कहा, “तेरा क्रोध, जो रेंड़ के पेड़ के कारण भड़का है, क्या वह उचित है?” उसने कहा, “हाँ, मेरा जो क्रोध भड़का है वह अच्छा ही है, वरन् क्रोध के मारे मरना भी अच्छा होता.” तब यहोवा ने कहा, “जिस रेंड़ के पेड़ के लिये तू ने कुछ परिश्रम नहीं किया, न उसको बढ़ाया, जो एक ही रात में हुआ, और एक ही रात में नष्ट भी हुआ; उस पर तू ने तरस खाई है. फिर यह बड़ा नगर नीनवे, जिसमें एक लाख बीस हज़ार से अधिक मनुष्य हैं जो अपने दाहिने बाएँ हाथों का भेद नहीं पहिचानते, और बहुत से घरेलू पशु भी उसमें रहते हैं, तो क्या मैं उस पर तरस न खाऊँ?” इस तरह परमेश्वर सारी दुनिया पर अनुग्रह करने के अपने स्वभाव को योना के सामने प्रस्तुत किया.
Lessons From Story Of Janah in Hindi
तो प्रियों, योना की कहानी से हम क्या सिख सकते हैं, यही की हमें परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना चाहिए. उसकी वाणी को सुनना और उसे अपने जीवन में लागु करना चाहिए. हमें दूसरों के प्रति प्रेमभाव के साथ उनकी भलाई के बारे में सोचना चाहिए. क्रोध से दूर रहना चाहिए.
क्या योना के जीवन में ये बाते थी, नहीं ! परमेश्वर की आज्ञा के बावजूद वह तर्शीश की ओर क्यों भागता हैं? उसका बढ़ा कारण यह है कि, योना नहीं चाहता था कि, नीनवे के लोग परमेश्वर के क्रोध से बच पाए. वह चाहता है कि निनवे के लोग अपने बुरे कामों के कारण पीड़ा और दुख का अनुभव करें. यानी वह नीनवे का नाश होते देखना चाहता था. योना पश्चाताप करने के बावजूद और नीनवे को परमेश्वर का वचन सुनाने के बाद भी उसके मन नीनवे को लेकर जो पहले बाते थी वही आखिर तक थी, यानी नीनवे को उसके बुरे कृत्यों के लिए दंड मिले. इसलिए वह आखिर तक परमेश्वर से क्रोधित रहता है.
तो प्रियों हमें योना की कहानी परमेश्वर के प्रेम और अनुग्रह के बारे में सिखाती हैं. परमेश्वर अपनी बनाई हुई दुनिया की हर जीवधारी प्राणियों से समान रूप से प्यार करता है और सभी को अपने अपने तरीके से बदलने और बेहतर बनने का मौका देता है. जैसे योना और नीनवे को दिया. दूसरा महत्वपूर्ण सबक यह है कि परमेश्वर के सामने से भागना असंभव है. यदि आप उसकी आज्ञाओं का पालन नहीं करते हैं, तो आपको दंडित किया जाएगा, लेकिन जब आप पश्चाताप के साथ उसकी शरण में आते है और उसकी आज्ञाओं का पालन करते है, तो परमेश्वर आपको माफ कर देगा. आपको उसकी योजना के अनुसार काम करना होगा, अन्यथा वह आपको अपनी आज्ञाओं का एहसास कराने के लिए आपके रास्ते में चुनौतियाँ भेजता रहेगा.
तो प्रियों हम आशा करते है कि आपको योना भविष्यवक्ता की यह कहानी जरुर पसंद आई होगी और आपने योना की कहानी से सबक लिया होगा.
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