Praise the Lord. भजन संहिता 15 अध्ययन | क्यों दाउद पवित्र पर्वत पर रहना चाहता है | Psalm 15 Study in hindi
आज हम भजन संहिता अध्याय 15 का गहराई से अध्ययन करेंगे। यह भजन हमें एक साधारण लेकिन महत्वपूर्ण प्रश्न के माध्यम से आत्मनिरीक्षण करने को कहता है. क्या हम वास्तव में परमेश्वर के निकट चलने के योग्य हैं? क्या हम परमेश्वर के निवास में रहने के योग्य है? क्या हमारे जीवन में वह पवित्रता है जो हमें परमेश्वर के समीप लाए? यह भजन हमें इन सवालों पर विचार करने पर मजबूर कर देता हैं.
तो चलिए, बाइबल के इस अद्भुत भजन को समझते हैं, जो हमें परमेश्वर की पवित्रता, सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
भजन संहिता 15 अध्ययन | Psalm 15 Study in hindi
सबसे पहले पढ़ते हैं भजन अध्याय 15
1.. हे परमेश्वर तेरे तम्बू में कौन रहेगा? तेरे पवित्र पर्वत पर कौन बसने पाएगा?
2. वह जो खराई से चलता और धर्म के काम करता है, और हृदय से सच बोलता है;
3. जो अपनी जीभ से निन्दा नहीं करता, और न अपने मित्र की बुराई करता, और न अपने पड़ोसी की निन्दा सुनता है;
4. वह जिसकी दृष्टि में निकम्मा मनुष्य तुच्छ है, और जो यहोवा के डरवैयों का आदर करता है, जो शपथ खाकर बदलता नहीं चाहे हानि उठानी पड़े;
5. जो अपना रूपया ब्याज पर नहीं देता, और निर्दोष की हानि करने के लिये घूस नहीं लेता है। जो कोई ऐसी चाल चलता है वह कभी न डगमगाएगा॥
भजन संहिता 15 का गहन अध्ययन
भजन संहिता 15:1
“हे यहोवा, कौन तेरे तम्बू में निवास करेगा? कौन तेरे पवित्र पर्वत पर बसने पाएगा?”
यह पद एक सवाल के साथ शुरू होता है। दाऊद परमेश्वर से पूछता है कि कौन ऐसा व्यक्ति है जो यहोवा के पवित्र स्थान में निवास कर सकता है। यहाँ “तम्बू” और “पवित्र पर्वत” परमेश्वर की उपस्थिति और उसकी आराधना के स्थान को दर्शाते हैं। दाउद का यह प्रश्न परमेश्वर के प्रति उसकी विनम्रता, आत्म-जांच, और उसके साथ गहरे संबंध की इच्छा को प्रकट करता है।
प्रियों दाउद का यह सवाल दर्शाता है कि हर कोई परमेश्वर के निकट नहीं आ सकता। इसके लिए एक विशिष्ट पात्रता आवश्यक है।
प्रियों योहावा के तम्बू में और पवित्र पर्वत पर ऐसी क्या चीज हैं, जो दाउद को वहां आकर्षित कर रही हैं. राजा दाउद परमेश्वर के तम्बू, पवित्र पर्वत पर रहने के लिए क्यों आतुर हैं. तो यहाँ में आपके सामने 4 पोइट्स रखना चाहूँगा,
1. परमेश्वर की उपस्थिति का अनुभव
तम्बू (मिश्कान) और पवित्र पर्वत, दोनों परमेश्वर की उपस्थिति के प्रतीक हैं। दाउद जानता था कि परमेश्वर की उपस्थिति शांति, सुरक्षा, और अद्भुत आशीषों का स्रोत है। उनकी उपस्थिति में भय और चिंता के लिए कोई स्थान नहीं।
2. परमेश्वर की संगति का आनंद
दाउद परमेश्वर की संगति के आनंद को समझता है। परमेश्वर की संगति में दाउद को आनंद, संतोष, और जीवन की सच्ची पूर्णता प्राप्त होती थी।
3. अनन्त सुरक्षा और आशीष
परमेश्वर के तम्बू और पवित्र पर्वत पर रहना स्वर्गीय सुरक्षा और आशीर्वाद का प्रतीक है। दाउद यह समझता था कि परमेश्वर के साथ रहना किसी भी सांसारिक अनुभव से अधिक कीमती है। उनकी उपस्थिति हमें पवित्रता, सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने की सामर्थ्य देती है।
4. दिव्य व्यवस्था का पालन
दाउद जानता था कि परमेश्वर की पवित्रता के मानकों पर चलने से न केवल ईश्वर के साथ संबंध मजबूत होता है, बल्कि यह जीवन को संतुलित, शुद्ध और स्थिर भी बनाता है। जब हम उनके तम्बू में निवास करते हैं, हमारा जीवन अर्थपूर्ण और उद्देश्यपूर्ण बनता है।
तो प्रियों, इस भजन का पहला वचन हमें आत्मनिरीक्षण करने को कहता है। यह एक ऐसा प्रश्न है जो हमारे जीवन के हर पहलू पर प्रकाश डालता है। यह हमें परमेश्वर की पवित्रता और उनके साथ संगति की आवश्यकता को समझने का अवसर देता है।
भजनकार ने एक गहन सत्य को प्रश्नों के माध्यम से व्यक्त किया है। यह हमें याद दिलाता है कि परमेश्वर के साथ संगति कोई साधारण बात नहीं है। यह एक बुलावा है, एक पवित्र बुलावा।
प्रियों आगे के वचनों के माध्यम से राजा दाउद हमें उन गुणों के बारे में भी बताते हैं, जिन्हें हम अपने जीवन में लागू कर के परमेश्वर की उपस्थिति में स्थान पा सकते हैं.
भजन संहिता 15:2
दुसरे वचन में तीन प्रमुख गुण बताए गए हैं:
- खरी चाल चलना – ऐसा व्यक्ति जो सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के साथ जीवन जीता है।
- धर्म के काम करना – जो अपने कर्मों में न्याय और भलाई को प्राथमिकता देता है।
- मन से सच्चाई बोलना – जिसका हृदय और शब्द सच्चाई के प्रतीक हैं।
यह वचन स्पष्ट करता है कि परमेश्वर के साथ संगति रखने के लिए केवल बाहरी आचरण ही नहीं, बल्कि आंतरिक सत्यनिष्ठा भी आवश्यक है।
भजन संहिता 15:3
“जो अपनी जीभ से निन्दा नहीं करता, न अपने पड़ोसी की बुराई करता है और न अपने पड़ोसी की निन्दा सुनता है।”
तीसरे वचन में जीभ के उपयोग के महत्व पर बल दिया गया है। इस पद में तीन बातें बताई गई हैं:
- किसी की निंदा न करना।
- मित्र की बुराई न करना।
- पड़ोसी के बारे में अपशब्द सुनने से बचना।
परमेश्वर के सामने स्वीकार्य व्यक्ति वह है जो अपने शब्दों के माध्यम से किसी को हानि नहीं पहुंचाता। यहां बताया गया है कि हमें अपनी जीभ पर नियंत्रण रखना चाहिए। दूसरों की बुराई करना या निंदा सुनना हमारे चरित्र को दूषित करता है। परमेश्वर के निकट रहने वालों के जीवन में ऐसा नहीं होना चाहिए।
भजन संहिता 15:4
“जिसकी दृष्टि में दुष्ट तुच्छ है, परन्तु जो यहोवा का भय मानते हैं, उनका आदर करता है; जो अपनी शपथ खाता है, चाहे हानि ही क्यों न हो, परन्तु बदलता नहीं।”
चौथा पद सिखाता है कि,
- बुराई और दुष्टता से घृणा करना।
- परमेश्वर से डरने वालों का सम्मान करना।
- अपने वचनों में दृढ़ रहना, चाहे उससे नुकसान ही क्यों न उठाना पड़े।
यह वचन सिखाता है कि हमें बुराई को अस्वीकार करना चाहिए और धर्मियों को सम्मान देना चाहिए। साथ ही, अपनी प्रतिज्ञा पर अडिग रहना चाहिए, भले ही वह हमें कठिनाई में डाल दे।
भजन संहिता 15:5
“जो अपना रुपया ब्याज पर नहीं देता, और निर्दोष के विरुद्ध घूस नहीं लेता। जो ऐसा करता है, वह कभी न डगमगाएगा।”
यह वचन हमें आर्थिक नैतिकता की शिक्षा देता है। हमें धन के लिए दूसरों का शोषण नहीं करना चाहिए। निर्दोषों के खिलाफ रिश्वत लेना या अन्याय करना परमेश्वर के सामने घृणास्पद है।
इस पद के अंत में दाउद बताते है कि ऐसे व्यक्ति को स्थिरता और सुरक्षा प्राप्त होती है। वह कभी डगमगाता नहीं क्योंकि वह परमेश्वर की इच्छा के अनुसार जीवन जीता है।
निष्कर्ष
दाउद का यह भजन एक प्रार्थना और आकांक्षा है। वह परमेश्वर की उपस्थिति में रहने और उसकी पवित्रता को अपनाने के लिए प्रेरित है। भजन संहिता अध्याय 15 दाउद के दिल की उस प्यास को दर्शाता है जो परमेश्वर के साथ स्थायी संगति और शुद्ध जीवन के लिए है। यह भजन हमें अपने जीवन में आत्म-जांच करने की चुनौती देता है। क्या हम ईमानदारी, सत्य और प्रेम से जीते हैं?
जब हम सोचते हैं कि “कौन तेरे तम्बू में निवास करेगा?”, तो यह वाक्य हमारे भीतर एक तीव्र अभिलाषा उत्पन्न करता है। क्या हमारा जीवन इतना शुद्ध है कि हम उनके पवित्र पर्वत पर वास कर सकें? यह वचन हमें आत्मसमर्पण और विनम्रता का पाठ पढ़ाता है।
परमेश्वर के बिना हमारा जीवन अधूरा है। उनकी उपस्थिति हमें न केवल जीवन के संघर्षों से बचाती है, बल्कि हमें एक ऐसा आनंद देती है, जो संसार में कहीं और नहीं मिल सकता। उनका तम्बू हमारी आत्मा का सच्चा घर है।
इस वचन का पालन करते हुए, हम अपने जीवन को परमेश्वर की महिमा के लिए समर्पित करें। उनके तम्बू में वास करना हमारे लिए सबसे बड़ा आशीर्वाद है।
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