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शिमशोन की कहानी | शिमशोन के जीवन से सीखे यह बड़ा सबक | Samson Bible Story in Hindi

samson bible story in hindi, shimshon ki kahani ; हरेक मनुष्य को परमेश्वर ने किसी न किसी प्रकार की प्रतिभा जरुर दी हैं. जिसके जरिए वह अपने उद्धेश्यों को पूरा कर सके. और अपनी प्रतिभा के जरिए ही वह एक सफल इंसान बन सकता हैं. लेकिन तब तक, जब तक वह परमेश्वर की आज्ञाओं को मानते हुए, उसकी इच्छाओं के अनुसार जीवन जीता हैं,और तब परमेश्वर उसके साथ रहता हैं. परमेश्वर उसके हर कामों में उसे सफल करता हैं. वह जो सोचता है उसे परमेश्वर उसके टैलेंट के माध्यम से पूरा करता हैं.

लेकिन जब वह परमेश्वर की ओर से दिए गए उपहार का गलत इस्तेमाल करता हैं. उसपर घमंड करता हैं. परमेश्वर की आज्ञाओं को नहीं मानता, उसकी इच्छा के विरुद्ध जीवन जीता है, तब वह उसे छोड़ देता है. और जैसे ही परमेश्वर उसे छोड़ देता है, तो उसकी प्रतिभा या उसकी हासिल की गई कोई भी वस्तु उसे कुछ काम नहीं आती. यही नहीं वह लोगों के सामने मजाक का केंद्र बन जाता है. जब वह परमेश्वर से दूर चला जाता है, तब वह सैतान के कब्जे में आ जाता है, और सैतान उसे वहा ले जाता है, जहाँ मौत हैं. यानी वह विनाश की ओर अग्रसर होता है.

तो प्रियों आज की कहानी भी हमें यही सिख देती हैं. परमेश्वर की आज्ञाओं का अवहेलना करना, उसकी इच्छा के विरुद्ध जीना, परमेश्वर को छोड़ खुद पर घमंड करना हमें विनाश की ओर ले जाता है.

प्रियों यह कहानी हैं बाइबिल के सबसे ताकतवर पुरुष शिमशोन की, जो कभी अकेला एक हजार शत्रुओं को रोंद देता है, जवान सिंह को फाड़ देता हैं, लेकिन अपनी इच्छाओं के साथ जीवन जीना उसे महंगा पड़ जाता हैं. और आखिर में शत्रुओं के हातों मजाक का केंद्र बन जाता हैं. और उसे अपना प्राण तक गवांना पड़ता हैं.

तो प्रियों जानते है शिमशोन की कहानी..

शिमशोन की कहानी | Samson Bible Story in Hindi

प्रियों शिमशोन का जन्म एक चमत्कारिक रूप से हुआ था. जिस प्रकार परमेश्वर के दूत ने सारा और अब्राहम को इसाक के जन्म की खबर सुनाई थी, ठीक उसी प्रकार शिमशोन के माता पिता को भी स्वर्गदूत ने उसके जन्म की खबर दी थी. क्योंकि सारा की तरह शिमशोन की मां भी बांझ थी. स्वर्गदूत ने शिमशोन की मां को उसके जन्म की खबर के साथ साथ शिमशोन के परवरिश को लेकर बताता हैं.

एक दिन शिमशोन के माता पिता दोनों को एक बार फिर स्वर्गदूत दर्शन देकर यह खबर सुनता हैं. तब शिनशोन का पिता यानी मानोह एक मेमने को लेकर परमेश्वर को धन्यवाद भेट चढ़ाता हैं. तब यहोवा का दूत उस वेदी की लौ में हो कर मानोह और उसकी पत्नी के देखते देखते आकाश में चढ़ जाता हैं. तब वे दोनों भयभीत होकर भमि पर मुहबल गिर के दंडवत करते है. और कुछ समय बाद शिमशोन का जन्म होता है.

प्रियों शिमशोन का जन्म उस वक्त हुआ, जब इस्राएल पर कोई राजा नहीं था. प्रत्येक व्यक्ति वही करता था जो उसकी नज़र में सही था अधिकतर बुरा काम ही करते थे. पहले वे परमेश्वर का अनुसरण करते, फिर वे अन्य देवताओं की ओर मुड़ जाते और गुलाम बन जाते. फिर वे परमेश्वर को पुकारते, और परमेश्वर उन्हें बचाने के लिए एक न्यायाधीश को खड़ा करते. ऐसा ही इस्राएल नित्यक्रम था. शिमशोन के जीवनकाल के दौरान लोग चालीस साल तक पलिश्तियों के गुलाम रहे थे. शिमशोन ने लगभग 1085 से 1065 ईसा पूर्व तक इस्राएल का न्याय किया.

शुरुआत में शिमशोन परमेश्वर के साथ बना रहा. उसके अनुसार जीवन जीता गया. और परमेश्वर उसे आशीष देता रहा. लेकिन कुछ समय बाद वह एक पलिश्ती स्री के प्रेम में पड़ जाता है. और अपने माँ बाप से उससे शादी करने को कहता है. शिमशोन के माता पिता, उसके इस निर्णय का विरोध करते हैं, पर आखिर शिमशोन उससे शादी कर लेता हैं.

प्रियों यहाँ शिमशोन परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन करता है. क्योंकि परमेश्वर ने मूसा के जरिए इजराइल को यह वचन दिया था कि,

“और न उन से ब्याह शादी करना, न तो उनकी बेटी को अपने बेटे के लिये ब्याह लेना. क्योंकि वे तेरे बेटे को मेरे पीछे चलने से बहकाएंगी, और दूसरे देवताओं की उपासना करवाएंगी; और इस कारण यहोवा का कोप तुम पर भड़क उठेगा, और वह तुझ को शीघ्र सत्यानाश कर डालेगा.” ( व्यवस्थाविवरण 7:3–4 ).

परमेश्वर की आज्ञाओं के विरुध्द जाने के बावजूद परमेश्वर शिमशोन के साथ रहता हैं. शादी के दौरान शिमशोन निरर्थक पहेली देकर बारातियों के साथ शर्त लगा लेता हैं. और आखिर में तीस कुरते और तीस जोड़ी कपड़ों के खातिर तीस पलिश्तियों को मार देता हैं. इससे पूर्व शिमशोन, एक जवान सिंह को बिना किसी हत्यार के फाड़ देता हैं.

एक दिन जब वह अपनी पत्नी से मिलने जाता है तो उसे पता चलता है की उसकी पत्नी का किसी और के साथ शादी कर दी गई है. इससे क्रोधित होकर शिमशोन ने 300 लोमड़ियों को पकड़कर और उनके पूंछ को मशाल बांधकर उन्हें पलिश्तियों के खेतों में छोड़ देता है. जिससे पलिश्तियों को भारी नुकशान उठाना पड़ाता हैं.

प्रियों शिमशोन को परमेश्वर ने अपने लोगों का न्याय करने के लिए, दुश्मनों से अपने लोगों की सुरक्षा के लिए भेजा था. लेकिन वह ये सब अपनी इच्छा के अनुसार कर रहा था. दुश्मनों के हाथों अपने लोगों की रक्षा करने के बदले वह अपनी इच्छा के अनुसार लोगों का बदला लेता हैं. यानी वह गलितियों पर गलती करता जाता हैं.

जब खेतों की नुकशान की खबर पलिश्तियों के कानों पर जाती है तब वे शिमशोन से बदला लेने के उद्धेश्य से यहूदा पर चढ़ाई कर के आते हैं. और शिमशोन को मौत के घाट उतारने पर तुले रहते हैं. और जब शिमशोन पर परमेश्वर की आत्मा उतरती हैं तब वह बिना हत्यार के यानी गधे की जबड़े से एक हजार पलिश्तियों को मार गिराता हैं.

कुछ समय बाद एक बार फिर शिमशोन, दलीला नामक एक स्त्री के प्रेम में पड़ जाता हैं. यह खबर पलिश्तियों के कान पर पड़ती हैं, तब पलिश्तियों के सरदार उस स्त्री से शिमशोन के बाहुबल का भेद का पता लगाने का लालच देते हैं. और दलीला शिमशोन को पकड़वाने के लिए राजी हो जाती हैं. वह शिमशोन के बल के राज जानने की कोशिस करीत हैं. तीन बार शिमशोन उसे नहीं बताता, लेकिन चौथी बार वह शिमशोन पर दबाव डालना शुरू कर देती है कि वह उसकी महान शक्ति का रहस्य बताए. अंत में, वह कहती है, “तेरा मन तो मुझ से लगा ही नहीं, फिर तू क्यों कहता है कि, मैं तुझसे प्रेम रखता हूँ? तू ने ये तीनों बार मुझसे छल किया और मुझे नहीं बताया कि, तेरे बड़े बल का भेद क्या है.(न्यायियों 16:15)

प्रियों आखिर में शिमशोन दलीला के सवालों के आगे झुक जाता है? क्योंकि वह उससे अपने प्यार और वफादारी को साबित करने की मांग करती है. वह उसे ये पूछ पूछ कर तंग कर देती है. इस बार दलीला ने उसे पहले से कहीं ज्यादा कमजोर कर देती हैं. और वह आध्यात्मिक रूप से भी अंधा बन जाता हैं. इसलिए शिमशोन दलीला को अपना राज बता देता है.

उस रात दलीला शिमशोन को अपने गोद में सुलाती है. और एक पुरुष की मदद से शिमशोन के बाल काट डालती हैं. तब वह निर्बल हो जाता हैं. परमेश्वर की सामर्थ उसे छोड़ देती हैं. उस वक्त दलीला उसे जगाकर कहती है, पलिश्तियों ने आप पर हमला किया हैं. शिमशोन उसी जोश के साथ उठता हैं, और सोचता है कि, पलिश्तियों का वही हाल करूँगा, जैसे पहले तीन बार किया हैं. लेकिन इस बार वह कुछ नहीं कर पाता. क्योंकि वह एक कमजोर बन चूका था. उसकी बाजुओं में वह शक्ति नहीं थी, जो उन्हें पलिश्तियों के हाथों से बचाती थी. तब पलिश्ती उसे पकड लेते हैं. और उसके दोनों आँखे फोड़ देते हैं. उसे अज्जा शहर को ले जाके पीतल की बेडिय़ों से जकडकर बन्दीगृह में चक्की पीसने लगा देते हैं.

प्रियों यहाँ शिमशोन का घमंड नजर आता हैं. वह परमेश्वर की उपस्थिति को ना महसूस करते हुए, खुद की ताकत पर घमंड करता हैं. यानी पहले तीन बार जैसे पलिश्तियों का हाल किया, वही हाल चौथी बार भी करूँगा ये सोचता है.

प्रियों जो पुरुष जवान सिंह को फाड़ देता हैं, तीन सौ लमडीयों को पकड सकता हैं, हजार शत्रूओं को एक गधे के जबड़े से मार गिराता हैं, वह पुरुष आखिर में अपने दुश्मनों का गुलाम बन जाता हैं. इतना कमजोर हो जाता हैं कि, बन्दीगृह में चक्की पीसने की नौबत आ जाती हैं. पर ऐसा क्यों, परमेश्वर ने उसे छोड़ क्यों दिया, क्या बाल काटने की वजह से? शायद हो सकता है, लेकिन सबसे बड़ा कारण यह है कि, परमेश्वर की आज्ञाओं को ना मानना. खुद पर घमंड करना.

कहानी यहीं नहीं खत्म होती, जब शिमशोन को पकड़कर बंदीगृह में डाल दिया जाता है, तब पलिश्तियों के सरदार अपने दागोन नाम देवता के लिये बड़ा यज्ञ करने और आनन्द करने को इकट्ठे होते है. उस वक्त शिमशोन को बंदीगृह से उनके सामने लाया जाता है ताकि, वह उनका मनोरंजन कर सके. उस वक्त वहा इकठे हुए पलिस्तियों द्वारा शिमशोन का मजाक उड़ाया जाता है. और वे अपने देवता के नाम का जयजयकार करने लगते हैं.

उस वक्त शिमशोन अपना हाथ पकड़ने वाले लड़के से कहते हैं, जिन खंभों पर यह घर संभला हुआ है मुझे उन्हें छूने दे, ताकि मैं उस पर टेक पाऊं. वह घर तो स्त्री पुरूषों से भरा हुआ था; पलिश्तियों के सब सरदार भी वहां थे, और छत पर कोई तीन हजार स्त्री पुरूष थे, जो शिमशोन को तमाशा करते हुए देख रहे थे.

तब शिमशोन अपनी इस कठिन परिस्थिति में यहोवा परमेश्वर को याद करते हुए दोहाई देता है कि, “हे प्रभु यहोवा, मेरी सुधि ले; हे परमेश्वर, अब की बार मुझे बल दे, कि मैं पलिश्तियों से अपनी दोनों आंखों का एक ही पलटा लूं.” उस वक्त परमेश्वर उसकी सुनता है और उसे बल देता हैं. अंत में शिमशोन कहता हैं कि, पलिश्तियों के संग मेरा प्राण भी जाए.” और वह अपना सारा बल लगाकर उन दोनों खंभों को गिरा देता हैं. तब वह घर सब सरदारों और उस में मौजूद सारे पलिश्तियों पर गिर पड़ता हैं. इस प्रकार उसने मरते समय जितने लोगों को मार गिराया वे वे उन से भी अधिक थे जिन्हें उसने अपने जीवन में मार डाला था. तब उसके भाई और उसके पिता के सारे घराने के लोग आए, और उसे उठा कर ले गए, और सोरा और एशताओल के मध्य अपने पिता मानोह की कबर में मिट्टी दी. शिमशोन ने इस्राएल का न्याय बीस वर्ष तक किया था.

प्रियों एक सुखद सुसमाचार के साथ सुरु हुई शिमशोन की यह कहानी अंत में सभों के आखों में आंसू भर देती हैं. एक ऐसा पुरुष जिसे परमेश्वर ने चुना, उसे शक्तिशाली बनाया, अवज्ञा के बावजूद परमेश्वर उसके साथ रहा. ताकि, वह अपने लोगों की रक्षा कर सके. लेकिन शिमशोन परमेश्वर को छोड़ अपनी ताकत पर घमंड करता था. वह परमेश्वर की इच्छाओं के बदले खुद की इच्छाओं को पूरी करने में लगा था. इस कारणवश शिमशोन को अपनी ताकत और अपनी आँखें दोनों ही खोनी पड़ी. और वह व्यक्ति जो पहले से ही आध्यात्मिक रूप से कमज़ोर था, वह अंत में शारीरिक रूप से भी कमज़ोर हो जाता है. वह जो आध्यात्मिक रूप से अंधा था, अंत में शारीरिक रूप से भी अंधा हो जाता है. वह जो आध्यात्मिक रूप से दास था, अंत में वह शरीर में भी दास बन जाता है. प्रियों अंत में शिमशोन उस हालत में पहुँच गया, जहाँ सिर्फ मौत थी

तो प्रियों जब हम शिमशोन की कहानी पर विचार करते हैं, तो हमें विश्वास, आज्ञाकारिता और ईश्वर की आत्मा पर निर्भरता के साथ जीवन जीने के लिए प्रेरित किया जा सकता है, हमें मार्गदर्शन करने के लिए उनकी संप्रभुता और अनुग्रह पर भरोसा करना चाहिए. अपने कार्यों को परमेश्वर की इच्छा के साथ संरेखित करना, खुद पर घमंड न करना और आत्म-निर्भरता से पर परमेश्वर पर निर्भर होकर जीवन जीना चाहिए.

तो प्रियों हम आशा करते है कि, शिमशोन की कहानी से आपको जरुर सिखने को मिला होगा. जिसे आप अपने जीवन में उतारेंगे. आपको यह लेख कैसा लगा हमें कमेंट सेक्शन में जरुर बताए. धन्यवाद

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